कुछ बातें -चाँद से
उन्होंने हमसे पूछा- इन रातो में क्यों इतना है सनाटा
हमने जवाब में कहा- हाँ, है शायद
मगर हमने इस सनाटे में भी एक सुकून ढूंढ है निकाला
वो बोले- कैसे?
हमने कहा देखना कभी उस सनाटे भरी रातों में
उस मचलती हुई, सरसराती हुई हवाओ
को
जो पेड़ो को छू हँसा जाती है
जो सड़को पर बिखरे पतों को नचा जाती है
जो ज़मीन पर जमी उस धूल को अपने संग उड़ा ले जाती है
और
हाँ, एक मजे की बात बताऊ
जब वक़्त से पहले उस सनाटे में मोर कुकहाता है
हाँ शायद हर कही नहीं
मगर मेरे इलाके में हर रात जरूर आता
है
और उस सनाटे में भी एक सुकून सा दे जाता है।
ज्योति जोशी

Comments
Post a Comment